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Wednesday, September 19, 2018

Umr aur prem pe ek lekh

यूँ तो प्रेम का मामला हमेशा नाज़ुक ही होता है, लेकिन कुछ प्रेम कहानियाँ इतनी नाज़ुक होती हैं कि जैसे ही उनका ख़ुलासा होता है, प्रेमियों की समझो शामत!

हिंदुस्तान में, अगर जाती या धर्म का फ़र्क़ हो तो परिवार और समाज के लोगों को तो तकलीफ़ है ही, प्रेमियों की जान को भी ख़तरा है। अगर केवल आर्थिक स्तर में फ़र्क़ हो तो लोगों की नाक-भौएँ चढ़ जाती हैं। जिसके पास पैसे ज़्यादा हों, उससे और उसके परिवार वालों से हमदर्दी  भी जताई जाती है। और अगर उम्र में बहुत फ़र्क़ हो, तो प्रेमियों का मज़ाख़ उड़ाया जाता है। 

इसका हाली उदाहरण है अनूप जलोटा और जसलीन मथारू की जोड़ी। ज़ाहिर है, मज़ाख़ जलोटा साहब का उड़ाया जा रहा है क्यूंकि उम्र ज़्यादा है। कहा जा रहा है, दोनों में 37 साल का फ़र्क़ है, सो प्रेमिका बेटी की उम्र की है। मगर मज़ाख़ में एक तरह की इर्षा भी झलक पड़ती है, के देखो! जवानों से बाज़ी मार ले गया! 

मैं सोचती हूँ, क्या होता अगर 65 साल की औरत, ख़ास कर भजन गाने वाली या प्रवचन सुनाने वाली कोई देवी जी, 28 साल के किसी बेहद खूबसूरत, तने-कसे बदन वाले आदमी का हाथ पकड़ लेती? 

एक-आध महीने की बात है, प्रियंका चोपड़ा का भी मज़ाख़ उड़ाया गया था क्यूंकि निक जोनास के साथ मंगनी की है। ख़ैर, यहाँ तो 10 साल का ही फ़र्क़ है। औरत की उम्र ज़्यादा हो तो लोगों को तीन या पांच साल भी बहुत ज़्यादा लगते हैं। मैंने अपने दोस्तों में, पढ़े-लिखे और काफ़ी हद तक आज़ाद ख़्याल लोगों के मूँह से 'क्रेडल-स्नैचर' जैसी अजीब संज्ञाएँ सुनी हैं, यानी पालने से बच्चा चुराने वाली। चाहे छेड़ने के लिए कहा हो, मगर आज भी युवा पीढ़ी की नज़र में भी, 30 साल की लड़की को 25 साल के लड़के पे नज़र डालने का हक़ नहीं है। 

आप कोई भी अख़बार उठा लें, शादी के इश्तेहार पढ़ें।  अगर 'लड़के' की उम्र 28 है, तो उसे 21 से 28 के बीच की 'लड़की' चाहिए। अगर 38 है, तो 25 से 35 के बीच की लड़की चाहिए और अगर 48 है, तो 30 से 45। 

कुछ लोग इसको औरत के बच्चे पैदा करने की उम्र से जोड़ते हैं।  मगर सच ये है: आदमी अगर जीवन की संध्या में हो, दूसरी शादी कर रहा होता है, तब भी ये असंतुलन नहीं बदलता। आदमी 60 या 65 का भी हो, चाहिए उसे 45-55 की औरत। मैंने आज तक ऐसा कोई इश्तेहार नहीं देखा जहां 60 का आदमी 55-70 साल की औरत की तलाश में हो। तलाश तो बहुत दूर की बात है, कोई इसकी कल्पना भी नहीं करना चाहता।   

कुछ हद तक इसका प्रमाण आपको फ़िल्मी अभिनेता और उनके किरदारों में भी दिखेगा। 50 साल के अभिनेता 23-24 साल की अभिनेत्रियों के साथ परदे पे प्रेम करते नज़र आते हैं और इसे स्वाभाविक माना जाता है। अभिनेत्री 40 की हुई नहीं, प्रेम कहानियाँ ही ख़त्म! 

शादी-ब्याह के मामले में 10 साल ज़्यादा नहीं माने जाते। बड़े-बुज़ुर्गों से ये भी सुना है कि मर्द-औरत में 10 साल का फ़र्क़ ठीक है। ठीक इस लिहाज़ से मानते हैं कि आदमी कमाएगा अच्छा और लड़की जितनी कमसिन और अनाड़ी, जितनी अनुभवहीन, जितनी परतंत्र हो, उतनी आसानी से पति और उसके परिवार के क़ाबू में रहेगी। यही 10-12 साल का फ़र्क़ भयानक लगने लगता है जब आदमी की उम्र कम हो। पत्नी या प्रेमिका अनुभवी हो, अपना अच्छा-बुरा समझती हो, ख़ुद पैसे कमाती हो, उसे आदमी के पैसों और उसकी दुनियादारी की ज़रुरत न हो, ये किसी को मंज़ूर नहीं। 

हमारा समाज दर-अस्ल आइना नहीं देखता। हर अधेड़ उम्र का आदमी, और अक्सर बूढ़ा आदमी भी, जवान औरत को देखता है तो उसकी नज़र में हमेशा ममता नहीं होती। बाज़ार में, रेस्टोरेंट में, सिनेमा हॉल में - आपको उनकी कामुक नज़र मिलेगी। अधेड़ उम्र की औरतें अगर उसी आज़ादी से, उसी आत्म-विश्वास के साथ, घर से बाहर निकलतीं, और ख़ूबसूरत जवान उम्र के लड़कों को देखतीं, तो उन्हें खूबसूरती और जवानी ही नज़र आती। ममता उमड़ पड़ने की संभावना कम है। ये बात अलग है कि हमारे समाज में औरतें अधिकतर पहल करती नहीं हैं; बदतमीज़ी भी नहीं करती हैं; नज़र पे ज़रा पर्दा पड़ा रहता है। चाहे उम्र का जो पड़ाव हो। और जहाँ नज़रें मिलने की संभावना है, वहीँ प्रेम और शादी की भी है।  

लेकिन अनूप जलोटा साहब से उम्मीद है, वे भजन गायें, प्रभु और माता की चौकी में मन लगाएँ। संपत्ति हो तो बच्चों के लिए छोड़ जाएँ। अकेलापन काटने को दौड़ता है तो अपनी उम्र के आस-पास किसी महिला से शादी कर लें। लोग कहेंगे, कोई बात नहीं; बुढ़ापे का सहारा हो गया। ख़याल रखने को भी कोई चाहिए इत्यादि। प्रियंका चोपड़ा साहिबा से भी यह उम्मीद है लेकिन उनके लिए 'आस-पास' की खिड़की और संकुचित है।  

किन्तु प्रेम? उम्र का लिहाज़ नहीं करता। प्रेम किसी चीज़ का लिहाज़ नहीं करता। जात-धर्म का नहीं। गोत्र और दर्जे का नहीं। हमारे यहाँ लोग हर उस चीज़ से डरते हैं जो दूसरों को (और ख़ुद उन्हें भी) निडर बना देता है। एक बार 'लोग क्या कहेंगे' का डर दिल से निकल जाए, फिर इंसान को किसी धर्म या झूठी रस्मों के खूँटे से बाँधना मुश्किल है। शायद इसलिए समाज में प्रेम को बांधने की कोशिश ही है। कभी धमकी दे कर, कभी मार कर, कभी मज़ाख़ उड़ा कर।


[ये लेख बीबीसी हिंदी ने ज़रा एडिट कर के छापा है: https://www.bbc.com/hindi/entertainment-45556594]