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Sunday, November 03, 2019

'शायरी मैंने ईजाद की'

ये मेरी पसंदीदा नज़्मों में से एक है, उर्दू के नामी शायर अफ़ज़ाल अहमद सय्यद की लिखी हुई:

'शायरी मैंने ईजाद की'



काग़ज़ मराकेशों ने ईजाद किया

हुरूफ़ फ़ोनेशनों ने

शायरी मैंने ईजाद की


क़ब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया

तंदूर पर क़ब्ज़ा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई

रोटी लेने वाले ने क़तार ईजाद की

और मिलकर गाना सीखा


रोटी की क़तार में जब चींटियाँ आ कर खड़ी हो गईं

तो फ़ाक़ा ईजाद हो गया

शहतूत बेचने वाले ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया

शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिए लिबास बनाया

रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की

जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया


फ़ासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किए

तेज़ रफ़तारी ने रथ बनाया

और जब शिकस्त ईजाद हुई

तो मुझे तेज़ रफ़्तार रथ के आगे लिटा दिया गया

मगर उस वक़्त तक शायरी मुहब्बत को ईजाद कर चुकी थी

मुहब्बत ने दिल ईजाद किया

दिल ने ख़ेमा और कश्तियाँ बनाईं

और दूर-दराज़ के मक़ामात तय किए

ख़्वाजासरा ने मछली पकड़ने का कांटा ईजाद किया

और सोये हुए दिल में चुभोकर भाग गया

दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए

नीलामी ईजाद हुई

और

जब्र ने आख़री बोली ईजाद की

मैंने सारी शायरी बेच कर आग ख़रीदी

और जब्र का हाथ ज़ला दिया
*