हिंद में हिंदी बनते बनते बनी, कई सौ साल लगे। अब भी बन ही रही है। संस्कृत के ताने पे तुर्की फ़ारसी का बाना और फिर जाने कौन-कौन ज़ुबान की कढ़ाई। अब अंग्रेज़ी के पैबंद लग रहे हैं।
हिंदी पे रहम कीजिए, फलने फूलने दीजिये। जब ज़ुबान नए धागे ढूंढ़ने लगे, नया मज़बूत रेशा, समझ लीजिए वो ज़िंदा रहना चाहती है। जितना उसे एयरटाइट डिब्बे में बंद करेंगे, उतनी जल्दी घुट के मर जाएगी। जिसे प्यार करते हैं उसे आज़ाद छोड़ना पड़ता है। नहीं तो, या तो प्यार मर जाएगा या वो, जिससे प्यार है।
हाँ, हिंदी से प्यार नहीं है तो कोई बात नहीं। लेकिन सोच लीजिए, ज़ुबान माँ भी होती है, बेटी भी। जहाँ प्यार मिला, वहीं मुड़ जाएगी। हैप्पी की तरह, जूते पहन के भाग जाएगी।
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