पहली बार हिंदी में कुछ लिखा। किसी और ने अनुवाद नहीं किया, ख़ुद लिखा, तो अपनी ही पीठ थपथपाने का जी चाहता है। पहले हिम्मत नहीं पड़ती थी। आख़िर मेरी हिंदी हिंदुस्तानी है, न कि सरकारी दफ़्तरों की नई हिंदी जो सर पे संस्कृत का भारी बोझ लिए घूमती है, जिसे समझने के लिए आम जनता को किसी अनुवादक की ज़रुरत पड़ती है। लेकिन अब शुरुआत की है तो सोचा है कि हिंदी को फिर से अपनी ज़ुबान पे रखूँ, थोड़े और प्यार के साथ, बिना किसी संकोच के। संकोच को झिझक कह दूँ। झिझक को हिचकिचाहट। कौन रोकेगा?
फ़िलहाल, bbchindi में छपा ये लेख:
http://www.bbc.com/hindi/india/2015/09/150919_women_writers_anie_zaidi_sr
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