केदारनाथ सिंह की आज बहुत याद आ रही है। ये कविता आज ख़ास सुनने का मन किया।
"ईश्वर को एक भारतीय नागरिक के कुछ सुझाव"
ईश्वर, अगर दुनिया फिर से बनानी हो
जिसमें देर हो रही है
तो मेरे कुछ सुझाव हैं
अधिक नहीं , बस पांच या सात
सबसे पहले
अणु बम को पृथ्वी से उठा कर
रख लेना स्वर्ग में
स्वर्ग का तो शायद कुछ न बिगड़े
पर हम पृथ्वी वासी
एक भयानक दुःस्वप्न के आतंक से
उभर जायेंगे
पैसे को दुनिया से ले लेना वापस
और हवा को बना देना
उसका विकल्प
बदल देना ब्रम्हांड का जर-जर पहिया
और अपनी पुरातन घड़ी को
मिला लेना पृथ्वी की धूप घड़ी से
यहाँ शहरों की गलियाँ अब पड़ रही हैं छोटी
इसलिए कुछ ऐसी जुगत करना
की पृथ्वी के बच्चे
कभी कभी क्रिकेट खेल आएं
चाँद पर
भारत का सृजन अगर फिर से करना
तो जाती नामक रद्दी को
फेंक देना अपनी टेबल के
नीचे की टोकरी में
बनारस को रहने देना
वरुणा और गंगा के बीच के दयारे में
पर दिल्ली को ?
यहाँ बहुत धुंध है
यहाँ से उठा कर
यमुना और क़ुतुब समेत
रख देना कहीं और
ताकि केंद्र को मिलती रहे
हाशिये की रौशनी
इस उलट फेर में
बस इतना ध्यान रहे
मेरा छोटा सा गांव कहीं उजड़ न जाए
और दलपतपुर चट्टी की बुढ़िया की बकरी
लौट आये घर
सुझाव तो ढेरों हैं
पर जल्दी-जल्दी में
ये अंतिम सुझाव
इधर मीडिया में
विनाश की अटकलें बराबर आ रही हैं
सो पृथ्वी का कॉपीराइट
संभाल कर रखना
ये क्लोन समय है
कहीं ऐसा न हो
कोई चुपके से रच दे
एक क्लोन पृथ्वी
- केदारनाथ सिंह
*
For those who cannot read Hindi, you can listen to this poem and some others, recited here:
https://www.youtube.com/watch?v=3SeyClsVuOc
"ईश्वर को एक भारतीय नागरिक के कुछ सुझाव"
ईश्वर, अगर दुनिया फिर से बनानी हो
जिसमें देर हो रही है
तो मेरे कुछ सुझाव हैं
अधिक नहीं , बस पांच या सात
सबसे पहले
अणु बम को पृथ्वी से उठा कर
रख लेना स्वर्ग में
स्वर्ग का तो शायद कुछ न बिगड़े
पर हम पृथ्वी वासी
एक भयानक दुःस्वप्न के आतंक से
उभर जायेंगे
पैसे को दुनिया से ले लेना वापस
और हवा को बना देना
उसका विकल्प
बदल देना ब्रम्हांड का जर-जर पहिया
और अपनी पुरातन घड़ी को
मिला लेना पृथ्वी की धूप घड़ी से
यहाँ शहरों की गलियाँ अब पड़ रही हैं छोटी
इसलिए कुछ ऐसी जुगत करना
की पृथ्वी के बच्चे
कभी कभी क्रिकेट खेल आएं
चाँद पर
भारत का सृजन अगर फिर से करना
तो जाती नामक रद्दी को
फेंक देना अपनी टेबल के
नीचे की टोकरी में
बनारस को रहने देना
वरुणा और गंगा के बीच के दयारे में
पर दिल्ली को ?
यहाँ बहुत धुंध है
यहाँ से उठा कर
यमुना और क़ुतुब समेत
रख देना कहीं और
ताकि केंद्र को मिलती रहे
हाशिये की रौशनी
इस उलट फेर में
बस इतना ध्यान रहे
मेरा छोटा सा गांव कहीं उजड़ न जाए
और दलपतपुर चट्टी की बुढ़िया की बकरी
लौट आये घर
सुझाव तो ढेरों हैं
पर जल्दी-जल्दी में
ये अंतिम सुझाव
इधर मीडिया में
विनाश की अटकलें बराबर आ रही हैं
सो पृथ्वी का कॉपीराइट
संभाल कर रखना
ये क्लोन समय है
कहीं ऐसा न हो
कोई चुपके से रच दे
एक क्लोन पृथ्वी
- केदारनाथ सिंह
*
For those who cannot read Hindi, you can listen to this poem and some others, recited here:
https://www.youtube.com/watch?v=3SeyClsVuOc
No comments:
Post a Comment