Wednesday, January 08, 2020

कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे

अली जवाद ज़ैदी साहब की एक नज़्म जो उन्होंने 1941 में लिखी थी, लखनऊ जेल में, जहाँ वो जंग-ए-आज़ादी में शामिल होने की वजह से क़ैद थे। 


गोली के ज़द पे जम गऐ , सीनों को तान के
तोपों के मुँह पे डट गऐ ,अंजाम जान के
क्या वीर थे सुपूत वो हिन्दोस्तान के

कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे

फौजों को अपने ध्यान में लाऐ नहीँ कभी
दुश्मन के दिल नज़र में समाऐ नहीँ कभी
मैदाँ से अपने पाऊँ हटाऐ नहीँ कभी

कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे

रण सामने था जोश में बढ़ते चले गऐ
कुहसार ज़ुल्म-o-जोर पे चढ़ते चले गऐ
आशार झूम झूम के पढ़ते चले गऐ

कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे

सुख चैन की बहार न ललचा सकी इन्हें
धन की नई फ़ुहार न बहका सकी इन्हें
घरबार की भी चाह न घबरा सकी इन्हें

कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे

क़ानून को रौंदते गाते गुज़र गऐ
सच्चाईयों की धूम मचाते गुज़र गऐ
दुख में भी सुख के गीत सुनाते गुज़र गऐ

कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे

मिटते हुऐ समाज को ठुकरा के बढ़ गऐ
धर्म आ गया जो राह में कतरा के बढ़ गऐ
इठला के, गा के , सैकड़ों बल खा के बढ़ गऐ

कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे

ये मुस्कुरा के शौक़ से रण में चले गऐ
ये भूक और प्यास के बन में चले गऐ
ये चाँद इब्तिदा के गहन में चले गऐ

कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे.

- Borrowed from Mehfil Sukhan

2 comments:

h.s.nayak said...

very nice post.

Unknown said...

As claimed by Stanford Medical, It's in fact the SINGLE reason this country's women live 10 years longer and weigh on average 19 kilos lighter than us.

(And actually, it has totally NOTHING to do with genetics or some secret-exercise and absolutely EVERYTHING around "HOW" they are eating.)

BTW, I said "HOW", and not "what"...

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